उजड़ रहे आदिवासियों के आशियाने

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राष्ट्रीय पार्क एवं अभयारण्य क्षेत्र को संवारने में


उजड़ रहे आदिवासियों के आशियाने


शहरों के झुग्गी बस्तियों में रहने को मजबूर हैं आदिवासी समुदाय



लेखक राजकुमार सिन्हा 9424385139


मध्यप्रदेश में 46 अनुसूचित जनजाति रहती है, जिसमें तीनसमुदायको आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है।जनगणनावर्ष 2011 के अनुसारमध्यप्रदेश कीकुलआबादी 7 करोड़ 26 लाख में आदिवासियों की जनसंख्या 1 करोड़ 53 लाख है अर्थात 21.1 प्रतिशत है। राज्य में 10 राष्ट्रीय पार्क एवं 25 अभयारण्य हैं, जो कि 10 हजार 882 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। प्रदेश के कुल 52 हजार 739 गाँवों में से 22 हजार 600 गाँवया तो जंगल में बसे हैंया फिरजंगलकी सीमा से सटेहुए कियाजाना हैं। इसमें 925 वनग्राम हैं जो कि कुल वन क्षेत्रका 11.40 प्रतिशत है। शुरूआती दौर में इन राष्ट्रीय पार्क एवं अभयारण्यों से 94गाँव के 5 हजार 460 परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है, जिनका कोईपुनर्वास नहीं हुआ तथा अब कोरएरिया बढ़ाने के नाम पर 109 गाँव के 10 हजार 438 परिवारों कोहटायेजानेकीकार्यवाहीजारीहै। इन्ही राष्ट्रीय पार्क एवं अभयारण्यों के क्षेत्रों के लिए में 426 गांव के 38 हजार 778 परिवारों को संरक्षित क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्माण(relignment) से बाहर कियाजाना (Excision)प्रस्तावित है।


कान्हा के 161 गांव तथा पेंच के 99 । गांव है शामिल


10 राष्ट्रीय पार्को में से कान्हा, पेंच, सतपुड़ा, बांधवगढ़, पन्ना एवं संजय धुबरी को 1973 से टाईगर रिजर्व घोषित किया गया है। जिसका कोर एरिया4773.627 वर्गकिलोमीटरहै। वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 तथा संशोधित 2006 की धारा 38(4)(11) के अन्तर्गत प्रत्येक टाईगर रिजर्वमेंबफर क्षेत्र अधिसूचित कियाजानाअनिवार्य है।बफर क्षेत्रक्रिटिकलटाईगरहेबीटेटयाकोरक्षेत्र कावह हिस्साहै,जहाकमप्रतिबंधलगायाजाताहै। इन 6 टाईगर रिजर्व के लिए 2010 से बफर जोन की अधिसूचना जारी कर 6318.72 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र बढ़ाया है। जिसमें कान्हा के 161 गांव तथा पेंच के 99 गांव शामिल है। ताडोबा, नवेगांव (महाराष्ट्र) से पेंच, कान्हा एवं अचानकमाराछतीसगढ़) तक वन्य प्राणी गलियारा (कॉरिडोर)बनाने की योजना है जिसमें प्रदेश के सिवनी, छिन्दवाडा, बालाघाट, मंडला एवं डिंडोरी जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र शामिल है।


पलायन करने को मजबूरआदिवासी समुदाय



इन क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय को वन अधिकार कानून 2006 के अन्तर्गत सामुदायिक अधिकार पत्र देने में अवरोध पैदा किया जा रहा है। जंगली जानवर इनके फसल तथा मवेशियों को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचाते हैं परन्तु किसीतरहकी क्षतिपूर्ति पार्क संचालकों द्वारा नहीं दियाजाताहै। बफर जोन में अनेक तरह प्रतिबंधों के कारण आवागमन, निस्तार,लघु वनोपज संग्रहण, मवेशीचराईतथाखेतीपरभारीसंकट के कारण आदिवासी समुदायपलायन करने को मजबूर है। कोरएरिया में शामिल अथवा संरक्षित वनक्षेत्रसे विस्थापित करने के पहले वन अधिकार कानून 2006 की धारा 4(2) के अनुसार राज्य सरकार राज्य स्तरीय समिति का गठन करेगी, जिसमें ग्राम सभा के लोग भी होंगे, जो यह अध्ययन करेगी कि वन्य प्राणी पर प्रभाव अपरिवर्तनीय नुकसान के लिए पर्याप्त हैं और उक्त प्रजाति के अस्तित्व और उनके निवास के लिए खतरा है। अध्ययन में यह बात साबित होने के बाद ही विस्थापनकी कार्यवाही नियमानुसार किये जाने प्रावधान है परन्तु ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनातेहुए सीधे ग्रामवासियों को हटाने का नोटिस जारी किया जा रहा है। अपने संसाधनों से उजड़कर आदिवासी समुदाय रोजगार की तलाशमें शहरों के झुग्गी बस्तियों में रहने को मजबूर हैं। सस्तेमजदूर के रूप में जबलपुर, नागपुर, नरसिंहपुर, भोपाल आदिशहरों में काम कर रहे हैं।


 


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