गुरु पूर्णिमा पर देश को संबोधित किया। पीएम मोदी ने कहा- जहां ज्ञान, वहीं पूर्णता और वहीं पूर्णिमा

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गुरु पूर्णिमा पर बोले पीएम मोदी- जहां ज्ञान, वहीं पूर्णता और वहीं पूर्णिमा

प्रधानमंत्री संबोधित करत

देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि आज हम गुरु-पूर्णिमा भी मनाते हैं और आज के ही दिन भगवान बुद्ध ने बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद अपना पहला ज्ञान संसार को दिया था।आप सभी को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस और आषाढ़ पूर्णिमा की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
            उन्होंने कहा कि सारनाथ में भगवान बुद्ध ने पूरे जीवन का, पूरे ज्ञान का सूत्र हमें बताया था। उन्होंने दुःख के बारे में बताया, दुःख के कारण के बारे में बताया, ये आश्वासन दिया कि दुःखों से जीता जा सकता है, और इस जीत का रास्ता भी बताया।

श्री मोदी ने आगे कहा त्याग और तितिक्षा से तपे बुद्ध जब बोलते हैं तो केवल शब्द ही नहीं निकलते, बल्कि धम्मचक्र का प्रवर्तन होता है। इसलिए, तब उन्होंने केवल पाँच शिष्यों को उपदेश दिया था, लेकिन आज पूरी दुनिया में उन शब्दों के अनुयायी हैं, बुद्ध में आस्था रखने वाले लोग हैं

पीएम मोदी ने कहा की गौतम बुध्द ने अपनी शिक्षा में अष्टांगिक मार्ग का रास्ता दिखाया।

अष्टांगिक मार्ग

बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :

सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना

सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना

सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूट न बोलना

सम्यक कर्म : हानिकारक कर्मों को न करना

सम्यक जीविका : कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक व्यापार न करना

सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना

सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना

सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना।

आप सभी को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस और आषाढ़ पूर्णिमा की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

 *कुछ अन्य विशेष जानकरी-* 

कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को पथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले के स्तर को पाना आवश्यक है। और लोगों को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते है। 

मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है : प्रज्ञा, शील और समाधि।

पंचशील

भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायीओं को पांच शीलो का पालन करने की शिक्षा दि हैं।

अहिंसा

पालि में - पाणातिपाता वेरमनी सीक्खापदम् सम्मादीयामी !

अर्थ - मैं प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

अस्तेय

पाली में - आदिन्नादाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी

अर्थ - मैं चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

अपरिग्रह

पाली में - कामेसूमीच्छाचारा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी

अर्थ - मैं व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

सत्य

पाली नें - मुसावादा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी

अर्थ - मैं झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

सभी नशा से विरत

पाली में - सुरामेरय मज्जपमादठटाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी।

अर्थ - मैं पक्की शराब (सुरा) कच्ची शराब (मेरय), नशीली चीजों (मज्जपमादठटाना) के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

 *बुद्ध की कुछ और शिक्षाएं* 

गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं। तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायीओं को चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदी शिक्षाओं को प्रदान किए हैं।

चार आर्य सत्य

तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था। बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताये हैं।

दुःख

इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।

दुःख कारण

तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।

दुःख निरोध

तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।

दुःख निरोध का मार्ग

तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।

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