एक दुर्लभ बृक्ष दहिमन से अच्छादिन पंचायत परिसर
०--बाबूलाल दाहिया
यह एक दुर्लभ समझी जाने वाली बृक्ष की किस्म दहिमन है। इसके मजबूत इमारती लकड़ी होने का प्रमाण यह बघेली कहावत ही पर्याप्त है जिसमे कहा गया है कि,
सगमन सरई दहिमन राना।
असी बरिस ना होंय पुराना।।
यानी सागौन ,सरई , दहिमन एवं अनाजो का राजा कोदो यह चारो इतने मजबूत हैं जो 80 वर्ष तक पुराने" खराब" नही होते।
दहिमन एक औषधीय गुणों युक्त पौधा है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह रक्त चाप ,क्रोध आदि को कम करता है।
प्राचीन समय मे जब राजाज्ञा ही सरवोपरि होती थी तो कही राजा क्रोध में आ किसी को अकारण ही सजाए मौत न देदे? इसलिए उनके सिंघासन में दहिमन की लकड़ी का भी उपयोग होता था।
सच्चाई कितनी है ? यह तो बैद्य य चिकित्सक ही बता सकते हैं। किंतु उनके सलाह पर हार्ट प्रावलम्ब से बचने के लिए आज भी लोग दहिमन की लकड़ी की माला य उसकी लाठी का उपयोग करते हैं।
सागौन, सरई के पौधे जहां होते हैं वहां अन्य पौधे नही पनप पाते। फल स्वरूप उनकी संख्या बहुत अधिक होती है।उसके विपरीत दहिमन के पौधे कही एकाध दुर्लभ ही मिलते है।
क्योकि कि जैसे ही इसका फल चार की तरह पका तो उसके मीठे गूदे के स्वाद के लालच में चिड़ियां समूचे फल को ही निगल जाती हैं और बाद में उन्हीं के द्वारा दूर दूर तक इसका बीज फैलता भी है जिससे इस बृक्ष का वंश परिवर्धन होता है।
किन्तु हमारे साथी राम लोटन कुशवाह पकने के एक दो दिन पहले गादर अवस्था मे ही हरसाल दहिमन के बीज को प्राप्त कर इसके पौधे तैयार कर लेते है । फल स्वरूप हमारे गाँव पिथौराबाद ग्राम पंचायत परिसर में इसके कई पौधे आच्छादित है।
दहिमन के पौधा की खूब सूरती का कारण उनके आकर्षक पत्ते है जो बड़े मोटे और गोल आकार के होते है।
कहा तो यह भी जाता है कि 1857 की ग़दर के समय बागी सैनिक एवं अग्रेजो के खिलाफ जंग करने वाले विद्रोही अपना सन्देश इसीके पत्ते में लिख कर भेजते थे जिससे खिसियाए अंग्रेज इसके बहुत सारे पौधों को ही कटवाकर नष्ट कर दिए थे।
इसके हरे पत्ते में लकड़ी से उरेह कर कुछ लिख दिया जाय तो पहले ठीक से नही दिखता पर सूखने पर अक्षर दिखने लगते हैं।