कविता-छोरो सुणतो नी हँईं

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कविता-छोरो सुणतो नी हँईं



प्रहलाद सिंह चौरे,हरदा

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काई को कईं छोरो सुणतो नी हँईं l

म न कई साँद म स दराँतो ली आ,

टोपली म स एकादो काँदो ली आ,

तू ख बणाई देऊँ कईं नी कईं l

तसमसाया कर्यो म्हाँ को म्हँईं,

पण नाव नी गुलाम सुणतो हँईं l

काई को कँईं------------------

 

म न कई बाड़ा म स भटा तोड़ी ला,

थोड़ा घणाँ मारूभटा तोड़ी ला,

तू ख भाजी बणाँई देऊँ कँईं,

पण बठ्यो रह्यो म्हाँ को म्हँईं l

नाव नी छोरो सुणतो हँईं  l

काई को कंँईं-----------------

 

पनचक्की प स आँटो पिसाई ला,

थोड़ो घणों घाँटो पिसाई ला,

आँटो तो निस्तुक नी हँईं l

पण फुस्क्या कर्यो म्हाँ को म्हँईं l

कईं बी करो छोरो सुणतो नी हँईं l

काई कै कँईं---------------------

 

माथा धोणाँ की मट्टी ली आ,

ओ ख रखणांँ ले ण नट्टी ली आ,

सपड़ी ख पूजापाठ करी लेऊँ कँईं

टुगुर टुगुर देख्या कर्यो उठ्यो नी कँईं

जरा टस स मस बी होतो नी हंँईं l

काई को कँईं---------------------

 

बाप न कई कि इंगारो लाई द,

चीलम की स्यापी भिंजाई लाई द,

मूँ म स नी निकली हाओ नी नईं l

आखिर ख म ईच उठी न गई,

गुर्री खाई ख देख्या कर्यो उठ्यो नी कंँईं l

काई को कँईं---------------------

 

कऊँच कि बेटा रोटी बणाँई  देऊँ,

थारा  कँईं कपड़ा लत्ता धोई देऊँ,

कयेच  तू ई कर्या करे,म नी करूँ कँईं l

दौड़ी ख करच,म ख करण देतो नी कँईं l

पण नाव नी छोरो सुणतो हँईं l

काई को कँईं------------------

 

भुन्सा र म्हारा स पैलम जागच,

झल्दी उठी ख हमारा पाँय लगच, कैच तू ख उठना की जरुवत नी हँईं l

तू ख कईं करना की जरुवत नी हँईं l

कुँण की देक लीच गुलाम सुणतो नी हँईं l

काई को कँईं-------------------

 

चुपचाप कुआ प स पाणी भरी लावच ,

बिना कये सबका हुन्ना धोई लावच,

म कऊंँच बेटा म बी करूँ कईं l

आ ब कयेच तू बठी र् ह म्हाँ की म्हँईं l

म बी तो सीखूँ कंँईं नी कँईं l

काई को कँईं--------------

 

पैलम बी एका मारे र् ह्य धुरूजमान,

आ ब बी एका मारे छे परेशान,

पैलम बी नी सुणतो थो म्हारी,

आरू आ ब बी एक नी सुणतो हंँईं 

दुआ छे नौकरी लगी जाय कँईं नी कँईंl

काई को कँईं -----------------------

 

काई को कँईं छोरो सुणतो नी हँईं l

                  

--------प्रहलाद सिंह चौरे,हरदा

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