सद्धार्थ मिश्र। जहां एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही है, वहीं इस माहौल में भी इजरायल और फलस्तीन आपस में संघर्षरत हैं। इजरायल और फलस्तीन के मध्य लंबे समय से विवाद है जो अनेक बार सशस्त्र संघर्ष का कारण बन चुका है। इस बार संघर्ष का कारण हमास का इजरायल पर बड़ी संख्या में रॉकेटों से हमला करना बना। इजरायल के अनुसार हमास ने गाजा से हजारों रॉकेट इजरायल पर दागे जिनमें 90 प्रतिशत को इजरायली रक्षा मिसाइलों ने हवा में निष्क्रिय कर दिया, परंतु कुछ रॉकेट आबादी में गिरे जिससे कुछ इजरायली नागरिक मारे गए। इस हमले की प्रतिक्रिया में इजरायल ने भी गाजा में हमास के ठिकाने पर निरंतर हमले किए। इजरायल का कहना था कि वह हमले तब तक जारी रखेगा जब तक वह हमास की आक्रमण क्षमता नष्ट नहीं कर देता। हालांकि मिस्र की मध्यस्थता से अब दोनों पक्षों के बीच युद्ध विराम हो गया है। देखना यह भी होगा कि यह युद्ध विराम कितने दिनों तक अमल में लाया जा सकेगा।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि ऐसी घटनाओं को रोकने, दोषी पक्षों की जवाबदेही व पीड़ितों को न्याय दिलाने वाली संस्थाएं इस मामले में क्या कर रही हैं। निसंदेह इस मामले में दोनों पक्ष दोषी हैं और दोनों पर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। विश्व में शांति व सुरक्षा बने रहना प्रत्येक देश के हित में है। वैश्विक व राष्ट्रीय शांति ही सर्वस्व खुशहाली, प्रगति व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है। इतिहास साक्षी है कि मात्र दो देशों के मध्य जन्मा संघर्ष भी पूरे विश्व को युद्ध की आग में धकेल सकता है। संयुक्त राष्ट्र इसी सिद्धांत पर आधारित है और उसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति व सुरक्षा बनाए रखना है। इस कारण सुरक्षा परिषद निरंतर कार्यरत रहती है व निर्धारित करती है कि विश्व में कहीं शांति भंग हुई या होने की आशंका तो नहीं है।
यूएन चार्टर के अनुसार, राष्ट्रों द्वारा किसी भी प्रकार के बल का प्रयोग निषेध है और केवल आत्मरक्षा हेतु एक राष्ट्र अपने क्षेत्र या सीमा में वास्तविक सशस्त्र हमले की स्थिति में ही दूसरे राष्ट्र के खिलाफ बल का प्रयोग कर सकता है। वह भी केवल तब तक जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मामले का संज्ञान न ले ले। इसका मतलब यह है कि एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र की नियमित सेना द्वारा केवल सीमा पार करने पर ही सशस्त्र हमले को पीछे हटाने के लिए कार्रवाई का अधिकार है जो सुरक्षा परिषद के हस्तक्षेप से समाप्त हो जाता है। अमेरिका में वर्ष 2001 में हुए कुख्यात आतंकी हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय कानून की एक नई व्याख्या सामने आई जिसने अग्रिम आत्मरक्षा में कार्यवाई के लिए मान्यता की मांग की। इस नई व्याख्या के अनुसार यदि किसी देश पर हमला किया गया है और उस पर शीघ्र अन्य हमला संभावित है तो उसे अगले हमले से पहले संभावित हमले के स्रोत पर कार्रवाई कर उसे रोकने का अंर्तिनहित अधिकार उस देश को प्राप्त है। भारत द्वारा पाकिस्तान में की गई र्सिजकल स्ट्राइक भी इसी व्याख्या के अंतर्गत न्यायोचित ठहराई जाती है। हालांकि इस विषय पर अंतरराष्ट्रीय कानून पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, पर राष्ट्रों की प्रथा में आज इस सिद्धांत को मान्यता लगभग प्राप्त है।
परंतु यह अधिकार भी आवश्यकता और आनुपातिकता के अधीन है जिसका अर्थ है कि इस प्रकार की कार्रवाई नितांत आवश्यक हो और इसमें प्रयोग हुआ बल देश के विरुद्ध हमले में प्रयोग किए बल के अनुरूप हो और इसमें केवल लक्ष्य को हानि पहुंचे व अन्य कोई क्षति न हो। स्थानीय कानून से तुलना में इसका अर्थ है कि अगर आप पर डंडे से हमला किया गया है तो आप अपने को बचाने व हमला करने वाले व्यक्ति को पीछे हटाने के लिए केवल जरूरी बल का ही प्रयोग करें।
जब इजरायल ने हमास की अधिकांश मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया था, तब फलस्तीन पर बड़े पैमाने पर हमला करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इजरायल के जवाबी हमले में सैकड़ों निर्दोष और निहत्थे नागरिक मारे गए जिनमें अनेक महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। प्रश्न है कि क्या इजरायल का हमला हमास के हमले के समानुपाती है? इजराइल का हमला हमास के हमले के अनुपात में नहीं लगता। इजरायल ने हमास के ठिकानों को निशाना बनाने की आड़ में फलस्तीन के विरुद्ध सिलसिलेवार हमले किए हैं जो किसी भी आसन्न हमले को रोकने के बजाय अपने सैन्य उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अधिक लगते हैं।
इस संघर्ष ने वैश्विक समुदाय के समक्ष अनेक प्रश्न पैदा किए हैं जिसमें अंतरराष्ट्रीय शांति-सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय कानून व संस्थानों की प्रासंगिकता और संघर्ष से उपजे मानवीय पहलू प्रमुख हैं। सुरक्षा परिषद ने इस मामले में संज्ञान लेने में जरूरत से ज्यादा वक्त लगाया। विलंब से संज्ञान लेना संभवत: इजरायल की मदद ही है जिससे इजरायल ज्यादा से ज्यादा सैन्य उद्देश्यों को प्राप्त कर सके। ऐसे में राष्ट्रों का समुदाय वाक्य कभी-कभी एक हास्यास्पद अभिव्यक्ति की तरह लगता है जिसका उपयोग कुछ निहित स्वार्थों को पूरा करने और शक्तिशाली राष्ट्रों व उनके मित्र देशों के हितों को पूरा करने के लिए किया जाता है। राष्ट्रों को विचार करना होगा कि क्या विश्व में एक सामंजस्यपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुदाय है। एक समुदाय जिसकी संस्थाओं की कुछ प्रासंगिकता और महत्व है या यह मात्र दिखावा और कुछ निहित स्वार्थों की पूर्ति का साधन है? ऐसे समुदाय का सदस्य होने का क्या अर्थ है? अपने अस्तित्व को बचाने हेतु प्रत्येक राष्ट्र को एक वास्तविक सद्भाव व सामंजस्य पर आधारित समुदाय का निर्माण करने में योगदान देना होगा तथा कानूनी संस्थाओं को निष्पक्षता से कार्य करने देना होगा, तभी विश्व में कानून का राज स्थापित हो सकेगा।
[प्रोफेसर, विधि संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय]
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