पुखा पुनर्वस जो ना बरसै । भात खाय का मनई तरसै।।

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 पुखा पुनर्वस जो ना बरसै ।
 भात खाय का मनई तरसै।।

        

 आर्द्रा नक्षत्र 20 जून से 4 जुलाई तक रहता है जो मुख्यतः धान की बुबाई का नक्षत्र माना जाता है। और यही कारण है कि उस पर यह कहावत बहुत प्रसिद्ध थी  कि,

स्वाती गोहूँ अद्रा धान। जे बोबै वा चतुर किसान।।

     किन्तु उसके बाद भी  धान की खेती करने के 15 -15 दिन के दो नक्षत्र और होते है वह है पुष्यऔर पुनर्वस ।

     उनके बारे में भी कहावत  कही जाती थी कि,

पुखा पुनर्बस कोदो धान। मघा सुरेखा खेती आन।।

यानी कि पुष्प और पुनर्वस तक तो आप धान कोदो बो सकते है ? उसके पश्चात अश्लेखा और मघा नक्षत्र में मात्र तिल अरहर और उड़द की खेती ही करनी चाहिए, धान कोदो की नही।

          इस वर्ष यू तो मानसून पन्द्रह सोलह जून को ही आगया था। पर आया भी तो इतना पानी आज तक नही गिरा कि खेतो में भर जाय। 

       इधर मुख्य धान बोने का नक्षत्र पुष्य भी आज से समाप्त हो गया।

    अब एक नक्षत्र का सहारा है ,वह है पुनर्वस । उसके बाद लगने वाले अश्लेखा नक्षत्र में तो धान बोने की यूही मनाही थी कि,

सुरेखा न बोइये। कूट पीस खाइये।।

पर एक माह पिछड़ कर अगर बोनी भी होगी तो फसल होगी भी य सिर्फ किसानों को लागत की चपत देकर ही चली जाय गी? कहा नही जा सकता।

          यह तो पक्की बात है कि धान की  देर से पकने वाली उन बाहरी किस्मो की फसल बोने से अब कोई लाभ नही होगा जो 130 दिन से अधिक समय लेगी।

क्योकि अगर उनमे 15 नवम्बर के बाद फूल आया  तो फिर   ठंड के कारण बाल में दाने ही नही बने गे।वह पोकचे और काले पड़ जाय गे।

          किन्तु हां ऋतु से संचालित देसी धानो को फिर भी बोया जा सकता है। क्यो कि हजारो साल से यहां की जलवायु में उगते - उगते उनने अपने को यहां की परिस्थितिकी में पूरी तरह से ढाल लिया है । और आगे पीछे की बोई साथ साथ पक जाती है।

        किन्तु अभी तो यही अनिश्चितता बनी है हुई है कि पुनर्वस में पानी गिरे गा भी य यह नक्षत्र भी निपान बना आर्द्रा और पुष्य की तरह ही चला जाय गा?

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