बारिश से बेफिक्र जरा इन कन्दों को तो देखिए ?

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 बारिश से बेफिक्र जरा इन कन्दों को तो देखिए ?

            -----पद्मभूषण विभूषित बाबूलाल दहिया जी की कलम से

          हमारे यहां पानी की बारिश कई दिनों से नही हुई है। किसान खेतो की जुताई कर हाथ मे हाथ रख कर घर मे बैठे हैं और आकाश में घुमड़ रहे बादलों को देख रहे हैं।

          किन्तु बाड़ में उगे सारे कन्द पानी की ओर से बेपरवाह अपनी अपनी वेल बढाने में होड़ सी लगाए हुए हैं। 

          क्योकि कि उन्हें बढ़ने की शक्ति पानी से नही जमीन में एक वित्ता गहरे  पैठ बनाए अपनी गाँठ से मिलती है जिसे कन्द कहाजाता है

         यह क्रमशः चारो पत्ते ---

1-- वैचादी कन्द

2-- भालू कन्द 

3--रायकन्द

4-- हँसिया ढापिन कन्द के हैं। 

       यू तो इनमे देखने मे अधिक अन्तर नही है ? फिर भी नशों के उभार एवं पत्ते के आकार के कटाव से जानकार लोगो के पहचान में आ रहे है। 

      यह हमारे बनाए नियम में नही बल्कि कुदरत के नियम पर जबाब देह हैं। क्यो कि कार्तिक अगहन तक अपनी कुछ नई गाँठ तैयार कर उन्हें सूख जानाहै। तभी तो वह सुअर , सेही एवं भालू के नैसर्गिक भोजन बनेंगे?

             मनुष्य तो आग के खोज के पश्चात बहुत बाद में इन्हें उबाल कर खाना शुरू किया जो एक तरह से दूसरे के भोजन में  डाका ही कहा जा सकता है।

          पर यह कई जंगली जन्तुओ के करोड़ों वर्षों से प्राणदाता रहे हैं।

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