सावन सुअनय परा अकाल। चीटी बहिनी देंय उधार।।

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 सामन सुअनय परा अकाल।
चीटी बहिनी देय उधार।

             ०--बाबूलाल दाहिया

        मित्रो  यू तो यह एक बघेली कहावत है  जिसमे एक तोता है जो बीसो  किलो  मीटर उड़कर अपना भोजन तलास  सकता है। और  किसी पेड़ में आराम से बैठ  आम जामुन अमरूद बेर आदि के फल कुतर कुतर कर खा सकता है।

     किन्तु दूसरी और एक छोटा सा जीव चीटी है जो धरती में पड़े छोटे छोटे दाने किनको को खाती है । और उन्ही को लेजाकर भविष्य के लिए अपने बिल में संचित भी करती है। चींटी की समझदारी का यह प्रमाण है कि वह एकत्रित घास के दानों को दो टुकड़ो में विभाजित भी कर देती है जिससे वह विल मेंअंकुरित होकर कहीं उसकी मेहनत ही बेकार न करदे।

          पर डाल में इतराने वाले तोते के भी कभी न कभी बुरे दिन आते है । क्यों कि सावन के महीने में एक समय ऐसा भी आता है जब किसी भी पेड़ में न तो कोई फल होते और न समई, सावा ,काकुन ,कुटकी आदि जल्दी पकने वाले अनाज के  दाने ही पक पाते।

        उस समय डाल के बजाय तोतो का झुंड जमीन में दाना तलासने उतर आता है। और जो अनाज तथा घास के  भीगे दाने वर्षा के रुकने  पर चीटियां बिल से निकाल सूखने के लिए धूप में रखती है उन्हें ही खाकर अपने प्राण बचाते हैं।

     पर यह समय सिर्फ दो चार दिन का ही होता है।

क्यों कि फिर सीघ्र ही समई घास में दाने पकने लगते है और उसके पश्चात सावा काकुन कुटकी मक्का आदि की फसल भी आजाती है। 

      फिर तो बरसात के बाद फलों के पकने की श्रंखला ही शुरु हो जाती है जो अषाढ़ तक चलती रहती है।

     किन्तु हमारे ग्रामीण कृषक पूर्वजो की दृष्टि कितनी तीक्ष्ण थी कि न सिर्फ वे चीटी और तोते के बीच के इस समन्वय को तजबीज लिये बल्कि अगली पीढ़ी के समझने के लिए उसे सूत्र बद्ध भी कर लिए। कि---

सावन सुअनय परा अकाल।

चीटी बहिनी देंय उधार।।

         लोगो का कथन है कि चीटी के उसी उधारी को पटाने के लिए तोता जितना खुद नही खाता उससे अधिक कुतर -कुतर कर फेंकता रहता है। ताकि चीटियां उसे ले जाए और बिल में सुरक्षित कर ले।

       सावन माह में तोते के भूखे रहने की पुष्टि एक बिरहा गीत भी करता है  जिसमे कहा गया है कि,

सामन शुक्ला सप्तमी ,सुअनय परा अकाल।

चीटी बहिनी मद्त कर,आपन हाल बेहाल।।

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