भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर काम करने वाली सरकारी और निजी कंपनियों को साथ लाने के लिए "इंडियन स्पेस एसोसिएशन" की शुरुआत की गई है. इसमें इसरो के अलावा टाटा, भारती, और एलएंडटी जैसी बड़ी निजी कंपनियां भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर को इस्पा की शुरुआत करते हुए कहा कि इससे "भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को नए पंख मिल गए हैं" उन्होंने यह भी कहा, "75 सालों से भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र पर सरकारी संस्थानों का वर्चस्व रहा है. इन दशकों में भारत के वैज्ञानिकों ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि भारतीय प्रतिभा पर किसी तरह की पाबंदी ना हो, चाहे वो सरकारी क्षेत्र में हो या निजी क्षेत्र में" निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका इस्पा का उद्देश्य अंतरिक्ष क्षेत्र की सरकारी संस्थाओं और निजी कंपनियों को साथ लेकर एक नीतिगत ढांचा तैयार करना है. इसके संस्थापक सदस्यों में एलएंडटी, टाटा समूह की कंपनी नेलको, भारती इंटरप्राइजेज की कंपनी वनवेब, गोदरेज, मैपमाईइंडिया और कई कंपनियां शामिल हैं. भारत में कई दशकों तक इसरो ही अंतरिक्ष क्षेत्र में अकेले काम करती रही लेकिन हाल के सालों में इस क्षेत्र में कई भारतीय और विदेशी निजी कंपनियां भी सक्रिय हुई हैं. जैसे वनवेब 322 सैटेलाइट लॉन्च कर भी चुकी है

कंपनी की योजना 648 सैटेलाइट लॉन्च करने की है जो धरती से ज्यादा ऊपर नहीं होंगी और संचार व्यवस्था में मदद करेंगी. कंपनी का लक्ष्य है कि 2022 में इनकी मदद से वो भारत और दुनिया भर में तेज गति और कम विलंब वाली इंटरनेट सेवाएं पहुंचा सके. अमेजॉन और स्पेसएक्स जैसी कंपनियां भी इसी तरह की योजनाओं पर काम कर रही हैं. स्पेसएक्स की तो 1,300 सैटेलाइटें लॉन्च भी की जा चुकी हैं. वैश्विक व्यवस्था में भारत पीछे इस समय सैटेलाइट आधारित संचार व्यवस्था का इस्तेमाल कम ही होता है. इसका इस्तेमाल या तो सरकारी संस्थाएं करती हैं या बड़ी निजी कंपनियां लेकिन माना जाता है कि आने वाले सालों में सुदूर इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने में इसका बड़ा योगदान रहेगा. इसरो के मुताबिक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य करीब 360 अरब डॉलर है लेकिन भारत की इसमें सिर्फ दो प्रतिशत की हिस्सेदारी है. इसरो का अनुमान है कि अगर भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र का और विस्तार किया जाए तो देश 2030 तक इस हिस्सेदारी को बढ़ा कर नौ प्रतिशत तक ले जा सकता है.