कोलकाता । चंद महीनों पहले हुए विधानसभा चुनाव में जो बीजेपी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही थी, वह उपचुनाव में बिल्कुल फीकी नजर आई। ममता बनर्जी के सामने राज्य में पूरा विपक्ष बेबस दिखा।पश्चिम बंगाल में बीते सप्ताह जिन तीन सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें सबकी निगाहें कोलकाता की भवानीपुर सीट पर लगी थी। यहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार थीं। इलाके की करीब 46 फीसदी गैर-बंगाली आबादी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने यहां एक हिंदीभाषी प्रियंका टिबरेवाल को मैदान में उतारा था। इस सीट पर ममता की जीत कोई खबर नहीं है। उनकी जीत के भारी अंतर से भी किसी को कोई अचरज नहीं है। वोटर भी जानते थे कि वे मुख्यमंत्री को वोट दे रहे हैं। लेकिन भवानीपुर और बाकी दो सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने राज्य में विपक्षी राजनीति का मौजूदा चेहरा उजागर कर दिया है। नेतृत्व में बदलाव और आंतरिक गुटबाजी से जूझ रही बीजेपी महज छह महीने पहले तक टीएमसी को कड़ी चुनौती देती नजर आ रही थी। लेकिन उपचुनाव में उसका खाता तक नहीं खुल सका। उसके विधायकों की तादाद भी लगातार घटती जा रही है। अप्रैल-मई में हुए विधानसभा चुनाव में 77 सीटें जीतने वाली भगवा पार्टी के पास अब महज 70 विधायक ही बचे हैं। कांग्रेस ने तो भवानीपुर में उम्मीदवार नहीं देने का फैसला कर अपनी लाज बचा ली। लेकिन सीपीएम उम्मीदवार की दुर्गति हो गई और उसे नोटा से महज 27 सौ वोट ही ज्यादा मिले। कई राउंड में पार्टी नोटा से भी पिछड़ी थी। ममता की जीत भवानीपुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए नाक और साख का सवाल बन गया था। दरअसल, भवानीपुर में सवाल कभी यह नहीं रहा कि ममता जीतेंगी या नहीं। यहां सबसे बड़ा सवाल था कि वे कितने वोटों के अंतर से जीतेंगी? ममता ने करीब 59 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की है। इससे पहले वर्ष 2011 में हुए उपचुनाव में यहां वे करीब 54 हजार वोटों से जीती थीं। वर्ष 2016 में उनकी जीत का अंतर करीब 25 हजार था जबकि इस साल अप्रैल में हुए चुनाव में टीएमसी उम्मीदवार शोभनदेव चटर्जी ने करीब 29 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। इससे साफ है कि अबकी जीत का अंतर दोगुने से ज्यादा है। अपनी रिकॉर्ड जीत के बाद ममता ने कहा, "नंदीग्राम की साजिश का भवानीपुर के लोगों ने माकूल जवाब दे दिया है।” यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि नंदीग्राम में कड़े मुकाबले में ममता बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से 1,956 वोटों से हार गई थी। हालांकि उन्होंने इस नतीजे को हाई कोर्ट में चुनौती दी है और यह मामला विचाराधीन है। भवानीपुर के अलावा मुर्शिदाबाद जिले की जिन दो सीटों-जंगीपुर और शमशेरगंज में उपचुनाव हुआ, वे भी टीएमसी ने भारी अंतर से जीत ली हैं। जातीय समीकरण भवानीपुर इलाका अपनी आबादी की विविधता की वजह से ‘मिनी इंडिया' कहा जाता है। इलाके में करीब 46 फीसदी गैर-बंगाली हैं और 20 फीसदी अल्पसंख्यक। ममता ने दावा किया कि इस बार उनको सभी तबके के लोगों का समान समर्थन मिला है। चुनाव नतीजों के विश्लेषण से ममता का दावा सही नजर आता है। बीते अप्रैल में विधानसभा चुनाव के समय पार्टी के उम्मीदवार शोभनदेव चटर्जी को यहां 57.71 फीसदी वोट मिले थे जबकि ममता को 71.91 फीसदी वोट मिले हैं। यानी पार्टी को मिलने वाले वोटों में करीब 25 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है। दूसरी ओर, पिछले चुनाव में यहां बीजेपी उम्मीदवार को 35.16 फीसदी वोट मिले थे जबकि अबकी पार्टी उम्मीदवार प्रियंका को 22।29 फीसदी वोटों से ही संतोष करना पड़ा है। सबसे खराब स्थिति रही सीपीएम उम्मीदवार श्रीजीव विश्वास की।