निरस्त बांध को फिर क्यों बना रही है मध्यप्रदेश सरकार?
8780 हेक्टेयर पर होगी सिंचाई, 6343 हेक्टेयर जमीन डूबेगी, क्या घाटे का सौदा कर रही सरकार
बसनिया बांध का विरोध करने के लिए गांवों में लोग सामूहिक बैठक कर रहे हैं। फोटो : राकेश कुमार मालवीय
मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी पर एक ऐसा भी बांध बन रहा है जिसमें 8780 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई होगी, लेकिन इससे 6343 हेक्टेयर जमीन डूब जाएगी। हैरानी की बात यह है कि इस बांध को 2016 में कई कारण बताते हुए निरस्त कर दिया गया था, लेकिन इसे ठंडे बस्ते से निकालकर प्रशासनिक स्वीकृति के बाद फिर शुरू कर दिया गया। इस बांध का स्थानीय स्तर पर विरोध तेज हो गया है। विरोध कर रहे लोगों ने इस बांध की उपयोगिता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
नर्मदा घाटी के मध्यप्रदेश हिस्से में 29 बांध बनाए जाने को 1972 में मंजूरी दी गई थी। गई। परियोजना की शर्तों के तहत नर्मदा जल विवाद अभिकरण द्वारा नर्मदा में उपलब्ध 28 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) पानी में से 18.25 एमएएफ पानी का इस्तेमाल 2024 तक सुनिश्चित करना है। वर्ष 2016 में नर्मदा घाटी विकास विभाग प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रजनीश वैश्य ने बताया था कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए बड़े बांधों की जगह पानी को लिफ्ट किया जाएगा। इसके लिए पूरी कार्ययोजना बनाई गई। 3 मार्च 2016 को विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह बताया गया कि बसानिया,राघवपुर, रोसङा,अपर बुढनेर,अटरिया, शेर और मछरेवा बांध को नए भू-अर्जन अधिनियम से लागत में वृद्धि होने,अधिक डूब क्षेत्र होने,डूब क्षेत्र में वन भूमि आने से असाध्य होने के कारण निरस्त किया गया है।
लेकिन इसके बाद एक बार फिर 1 अप्रैल 2017 को बांधों को मंजूर करते हुए 9 योजनाओं को फिर से स्वीकृति दी गई। दावा किया गया कि प्रदेश में 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा मिलेगी और 225 मेगावाट विद्युत उत्पादन होगा। इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार के स्वामित्व की नर्मदा बेसिन प्रोजेक्ट कंपनी और पावर फाइनेंस कार्पोरेशन नई दिल्ली के मध्य एमओयू साइन किया गया। नर्मदा बेसिन प्रोजेक्ट कम्पनी लिमिटेड मप्र शासन के स्वामित्व वाली कंपनी है। दस परियोजनाओ (चिंकी - बोरास बराज बहुउद्देशीय, शक्कर पेंच लिंक, दुधी बांध, अपर नर्मदा बांध, हांडिया बराज, राघवपुर बहुउद्देशीय, बसनिया बहुउद्देशीय, होशंगाबाद बराज, कुक्षी माइक्रो सिंचाई और सांवेर उदवहन सिंचाई) के लिए पावर फाइनेंस कार्पोरेशन, दिल्ली से 26 मई 2020 को 22 हजार करोड़ रुपए कर्ज लेने का अनुबंध किया गया। इसमें से 10 हजार 369 करोड़ रुपए चिंकी-बोरास 5083 करोड़,सांवेर उदवहन सिंचाई 3046 करोड़ और अपर नर्मदा बांध 2240 करोड़ की परियोजना को 8 जून 2021 को मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है।
स्वीकृत बांधों में बसानिया बांध भी शामिल है। मंडला जिले की घुघरी तहसील के ओढारी गांव के पास बनाए जाने वाले इस बांध पर 2731 करोड़ रुपए की लागत होने का अनुमान लगाया गया है। इस बांध का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। इसके पास राघवपुर बहुउददेश्यीय परियोजना भी है, इन दोनों परियोजना में कुल मिलाकर 79 गांव डूब में आने हैं।
सूचना के अधिकार आवेदन से प्राप्त जानकारी के मुताबिक बसनिया बांध में काश्तकारों की निजी भूमि 2443 हेक्टेयर, वन भूमि 2107 हेक्टेयर और शासकीय भूमि 1793 हेक्टेयर यानी कुल 6343 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी। बांध की डीपीआर में बताया गया है कि इससे 42 गांव की 8780 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई और 100 मेगावाट जल विद्युत का उत्पादन होगा।
बरगी बांध विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा ने इस बांध की उपयोगिता पर कई सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि जब मध्यप्रदेश में अतिरिक्त बिजली मौजूद है, और पानी की उपयोगिता पुराने बांधों में ही अब तक पूर्ण क्षमता से नहीं की जा सकी है, सालों पहले पूरे हो चुके बांधों में नहरें अब तक भी नहीं बनी हैं, तब एक और बांध बनाकर इतनी बेशकीमती जमीन और जंगल डुबाने का क्या मतलब है। वह कहते हैं कि सरकार असिंचित क्षेत्र में पानी पहुंचाने के लिए उदवहन योजना पर काम कर सकती है, जिसमें कम जंगल और जमीन का नुकसान हो। फिलहाल कोविड के चलते सरकारी खजाने की माली हालत खराब है और सरकार का ज्यादा जोर स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाने पर होना चाहिए, तब सरकार एक ऐसे बांध पर खर्च कर रही है, जिसमें फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका है।
सिन्हा बताते हैं कि उधर चिंकी बांध से नरसिंहपुर और जबलपुर के 92 गांव डूब में आने थे, परन्तु स्थानीय लोगों के विरोध के बाद विधायक जालम सिंह ठाकुर केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहाने से मिले और उन्होंने इस बांध को माइक्रो लिफ्ट इरिगेशन में परिवर्तित करा कर क्षेत्र को डूबने से बचा लिया। सरकार ने लोगों और राजनीतिक्षों के दबाव में सही निर्णय ले लिया, लेकिन बसनिया और राघवगढ़ परियोजना में हजारों लोगों के विरोध के बावजूद भी निर्णय नहीं लिया जा रहा है, क्योंकि ये लोग आदिवासी हैं।
बांध से प्रभावित होने वाले दरगढ़ ग्राम पंचायत के निवासी जो बजारी लाल सरवटे नारायणगंज के जनपद सदस्य भी हैं। उन्होंने बताया हमारा गांव पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आता है, यहां पर बांध बनाने से पहले ग्राम सभा की अनुमति लेना आवश्यक है, लेकिन अभी तक इस तरह की कोई प्रक्रिया नहीं की गई है, हम इस बांध का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं होने वाला।
औढ़ारी गांव के अर्जुन सिंह मार्को कहते हैं कि हम इस बांध का विरोध करते हैं, बांध बन जाने से हम विस्थापित हो जाएंगे तो हमारे बाल बच्चे कहां जाएंगे। इसी गांव के बैगा आर्मो भी परियोजना को दो टूक मना करते हैं, उनका सीधा सवाल है कि परियोजना बनी तो हम कहां जाएंगे।