श्री दाहिया जी द्वारा समय-समय पर कृषि, जैव विविधता पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ी महत्वपूर्ण ज्ञान विज्ञान की बातें बहुत सरल और सहज ढंग से प्रस्तुत की जाती हैं। इस लेख में भारतीय परंपरा में किसानों द्वारा नक्षत्र विज्ञान में वर्षा योग का सटीक पारंपरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
ग्रामीण भारत का विस्तृत कृषि विज्ञान कहावतों लोकोक्तियों में- चटका मघा पटक गा ऊसर
०-- पद्मश्री विभूषित श्री बाबूलाल दाहिया जी
यू तो 27 नृक्षत्रो में से वर्षा के आठ नृक्षत्र ही माने जाते है । पर वर्षा आधारित खेती के लिए इनमे मघा नृक्षत्र अति महत्वपूर्ण होता है। इसीलिए शायद मघा पर बघेली की सब से अधिक कहावते कही गई है। क्योकि यह खरीफ रवी दोनों फसलो को प्रभावित करने वाला बीच का नृक्षत्र है।
वैसे वर्षा को हमारे मौसम विज्ञानी मनीषियों ने 2 बर्गो में बांटा है।
1 --अर्द्रा ,पुष्प ,पुनर्वश और अस्वलेखा प्रथम चरण के चार नृक्षत्रो का प्रथम वर्ग जो "20 जून से 15 अगस्त तक रहता है ।"
दूसरा मघा ,पूर्वा ,उत्तरा और हस्त दूसरे चरण के चार नृक्षत्रो का वर्ग है जो "16 अगस्त से 8 अक्टूबर तक रहता है।"
इसीलिए शायद कहावत कही गई होगी। कि,
जउन करय अद्रा तउन करै चार।
जउन करै मघा तउन करै चार।।
यानी कि अगर आर्द्रा में ठीक से बारिश नही हुई तो अश्वलेखा तक उसी तरह वर्षा की दशा रहे गी । क्यों कि पहली मानसूनी वर्षा हिन्द महासागर की ओर से आनेवाले बादलों से होती है । इसलिए यदि आर्द्रा में मानसून बिगड़ गया तो वही दशा अश्वलेखा तक रही आती है।
पर दूसरे क्रम का मघा में आनेवाला मानसून अमूमन बंगाल की खाड़ी से आता है। इसलिए वार- वार के अनुभवो से प्राप्त ज्ञान को हमारे पूर्वजो ने सूत्र बद्ध कर लिया कि
"जैसी वर्षा मघा में होगी उसी तरह पूर्वा, उत्तरा और हस्त में भी होगी।"
एक कहावत में फसल के लिए भी मघा के पानी को लाभप्रद बताया गया है । यथा,
जो कहु मघा बरख गा जल।
सब अनाज का होई भल ।।
इस तरह न जाने कब से यह मौखिक परम्परा का ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलाआ रहा है।
कुछ कहावतो मे तो यहां तक कहा गया है कि "जिस प्रकार माता के परोसने से पुत्र को भोजन में पूर्ण संतुष्टि मिलती है उसी तरह मघा नृक्षत्र की वर्षा से खेत को भी। यथा।
"मघा के बरसे माता के परसे बहुर न मागय पुन कुछ हर से।।
य
मघा न वरसे भरे न खेत।
माई न परसे भरे न पेट।।
आदि आदि।
पर इस साल मघा के लग जाने के बाद भी अनाजो को झुलशा देने वाली उसी तरह की तेज धूप देख किसान बिचलित सा दिख रहा है । क्यों कि एक कहावत में यह भी तो कहा जाता है कि,
चटका मघा पटकि गा ऊसर।
दूध भात मा परिगा मूसर।।
यानी की धान का सूखना और चावल खाने में ब्यावधान के आसार स्पष्ट ।
तो कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार मौसम के हालात बन रहे है वह किसानों के लिए अच्छे आसार का संकेतक नही है। क्यों कि,16 अगस्त को लग कर 29 अगस्त को समाप्त होने वाले इस नृक्षत्र में
मघा धरती अघा
जैसी कहावते चरितार्थ होती नही दिख रही। और अपन तो रोज ही अपनी 200 किस्म की धानो की सिंचाई पम्प से ही करते हैं।
किन्तु इधर सरकारी अधिकारी खेती को लाभ का धंधा बताकर किसान की इतनी पूजी फसवा देते है कि कर्ज के बोझ से वह उबर ही नही पाता।