कितनी खूब सूरत दिखती है काकुन की बालिया ?

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 कितनी खूब सूरत दिखती है काकुन की बालिया ?

              ०--बाबूलाल दाहिया

           यह काकुन है। कही कही इसे कांग भी कहते है। सांवा कुटकी की तरह ही यह भी एक मोटा अनाज है।

          हमारे क्षेत्र में इतनी कम बारिश हुई है कि मात्र एक दिन ही जमीन से पानी बहा है। बाकी दो तीन दिन के अंतराल में वह पर्ण सिंचन ही करता रहा जो अब भी बदस्तूर जारी  है । 

       पर पानी गिरे य न गिरे काकुन की बला से। ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति ने इन मोटे अनाजो को सूखे से लोहा लेने के लिए ही भेजा है ?

          इन दिनों  उसकी  एक एक बालिन्स की लम्बी लम्बी दानों से भरी आकर्षक  बालिया पकने के लिए तैयार है।क्यों कि वह भी 


          तीन पाख दो पानी ।

          पक आई कुटकी रानी।।


का ही अनुशरण करने वाली कुटकी की बड़ी बहन ही है ।और  डेढ़ माह में ही पक जाती है।

यह अवश्य है कि इसकी पीले पीले दानों से भरी लटक रही बालिया तोता को बहुत आकर्षित करती है । तना 4 फुट ऊंचा किन्तु पतला होता है अस्तु वे झुण्ड के झुंड आते है और काट कर चोंच में दबा ले जाते है। इसलिए 7 -8 दिन की तकाई करनी पड़ती है।

       हमारे क्षेत्र में पहले यह काकुन ज्वार और मक्के के साथ मिलमा बोई जाती थी। पर कई वर्षो से इसका बीज समाप्त था। 

        इस काकुन का बीज भी हमे  40 जिलों की बीज बचाओ कृषि बचाओ  यात्रा  के समय ही  मिला था और  mp राज्य जैव बिबिधता बोर्ड ने इसके संरक्षण सम्वर्धन का दायित्व  हमे ही सौप दिया था।  इसलिए इस काकुन को बाखूबी उगा कर बीज तैयार किया जा रहा है। 

   आज मनुष्य  भरपूर साधनों से सम्पन्न है । पर प्राचीन समय में जब वर्षा आधारिति खेती ही अजीविका की साधन थी तब इन मोटे अनाजो का हमारे बाप पुरखों को अकाल दुर्भिक्ष के समय जीवित रखने में बहुत बड़ा योगदान था।

       हमे खुसी है कि यात्रा में इसकी लाल पीली और काली तीन प्रजातिया प्राप्त हो गई है।

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