भोपाल । पिछले साल मार्च में कोरोना की दस्तक से पहले तक भेल कारखाने की तीनों कैंटीनों में कर्मचारियों की चहल-पहल हुआ करती थी। बीते डेढ़ साल से इन कैंटीनों में वीरानी छाई हुई है। भेल प्रबंधन कमजोर वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए इन कैंटीनों को फिर से शुरू नहीं करा पा रहा है। प्रबंधन का साफ कहना है कि अब कैंटीनों को न लाभ न हानि की तर्ज पर शुरू कर सकते हैं। अब कैंटीन में सबसिडी के लिए पैसे नहीं हैं। इससे कर्मचारियों में रोष है। भेल की तीनों प्रतिनिधि यूनियन राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस, भारतीय मजदूर संघ, ऑल इंडिया भेल एम्प्लोई यूनियन के पदाधिकारी कैंटीनों को सबसिडी के साथ शुरू कराने पर अड़े हुए हैं। विवाद के चलते प्रबंधन ने भेल कारखाने की तीनों कैंटीनों को शुरू करने का मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया है। इससे भेल के पांच हजार कर्मचारियों व सात हजार ठेका श्रमिकों को नाश्ता व खाना उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। कर्मचारियों को घरों से ही नाश्ता व खाना लाना पड़ता है। बता दें कि भेल कारखाने की तीन पालियों में कर्मचारी काम करते हैं। ऐसे में कारखाने की कैंटीनों से रोजाना कर्मचारियों को चाय-नाश्ता व खाना नहीं मिल पा रहा है। ऑल इंडिया भेल एम्प्लोई यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव रामनारायण गिरि ने भेल प्रबंधन के समक्ष फिर यह मांग दोहराई है कि कैंटीनों को सबसिडी की पुरानी व्?यवस्?था के तहत ही पुन: शुरू करें। भेल कारखाने में पदस्थ अधिकारियों के खर्चों में कोई कटौती नहीं की जाती है। प्रबंधन को कर्मचारियों के खर्चों में कटौती करने की याद क्यों आती है। यदि आने वाले दिनों में कैंटीनों को सबसिडी के साथ शुरू नहीं किया गया तो आंदोलन करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। कर्मचारियों की सुविधाओं में कटौती नहीं होने देंगे।