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नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देश के नेताओं के आपसी तालमेल बिठाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होगी। यह यात्रा कई मायनों में दिलचस्प होने वाली है। अबकी बार ट्रंप सरकार के नारे के बाद जब बाइडन सत्ता में आ गए थे तो कई तरह के समीकरणों के उलट पलट होने की आशंका जताई जा रही थी। लेकिन अमेरिका में सत्ता बदलाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी और बाइडन की तीन बार बात हो चुकी है। हालांकि आमने सामने की यह पहली मुलाकात है। लेकिन इस यात्रा से पहले दोनों पक्षों ने काफी होमवर्क किया है। माना जा रहा कि आपसी केमिस्ट्री बनाने में माहिर मोदी की बाइडन से भी निजी स्तर पर अच्छी समझ बनेगी। जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान के ताजा घटनाक्रम के मद्देनजर वैश्विक हालात काफी बदले हुए हैं। अमेरिका को इस इलाके में एक भरोसेमंद साथी के रूप में भारत की जरूरत है। वहीं भारत के लिए भी अमेरिकी सहयोग आतंकवाद व कट्टरपंथ से लड़ाई और तालिबान पर दबाव बनाए रखने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। अमेरिका में क्वाड के शीर्ष नेताओं की पहली बार आमने-सामने मुलाकात हो रही है। इसके पहले मार्च में वर्चुअल बैठक हुई थी। चीन की घेरेबंदी के लिहाज से बना यह गठजोड़ बाइडन के आने के बाद ही शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर सक्रिय हुआ है। इसके पहले विदेश मंत्री स्तर की ही वार्ताएं होती थीं। लिहाजा मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान क्वाड बैठक की सफलता भी बड़ी उपलब्धि होगी। पाक-चीन के खिलाफ अमेरिकी नीति अहम भारत के खिलाफ पाकिस्तान का छद्म युद्ध जारी रहने और चीन के अतिक्रमणवादी नीति के बीच बाइडन की चीन नीति भी भारत के लिए बहुत महत्व रखती है। भारतीय पक्ष चाहता है कि अमेरिकी सहयोग परस्पर हितों पर आधारित हो। ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका के बीच ऑकस बनने के बाद हिंद प्रशांत क्षेत्र में क्वाड की भूमिका को प्रभावी बनाये रखना और इसके बहुआयामी एजेंडे में भारत के हित भी वार्ता की मेज पर होंगे। बराक ओबामा और ट्रंप दोनों के संबंध मोदी से बेहतर बने रहे हैं। बाइडन से रिश्तों की परख कई मुद्दों पर होनी बाकी है। बाइडन की कश्मीर नीति और उदारवादी दृष्टिकोण कई मुद्दों पर भारत के मौजूदा नेतृत्व से मेल नही खाता। लेकिन भारत और अमेरिका का सामरिक और व्यापारिक गठजोड़ जिस मुकाम पर है वहां भारत और अमेरिका एक दूसरे के लिए अपरिहार्य नजर आते हैं। मोदी जब 2014 में चुनाव जीते तब ओबामा पहले राष्ट्राध्यक्ष थे जिन्होंने फोन कर मुबारकबाद दी। ओबामा ने फोन कर मोदी को व्हाइट हाउस आने का न्योता दिया था। ओबामा और मोदी की हर मुलाकात सकारात्मक रही। ओबामा ने मोदी को मैन ऑफ ऐक्शन कहा था। मोदी ने ओबामा को दोस्त बराक कहकर संबोधित किया था। ओबामा ने एनएसजी ग्रुप में भारत की एंट्री का समर्थन किया, हालांकि चीन ने अड़ंगा लगाया। ओबामा ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया। उन्होंने ड्रोन समेत कई रक्षा उपकरण साथ मिलकर बनाने की बात कही। अपाचे-चिनूक का सौदा ओबामा के कार्यकाल में ही हुआ। मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री भी गजब की थी। उन्होंने चीन के खिलाफ तनाव में भारत का साथ दिया। पाकिस्तान को आतंकवाद को शाह देने वाला मुल्क बताया। सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्य्ता की वकालत की। तीन अरब डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किए। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच कॉमकासा और वर्ष 2020 में बेका समझौता हुआ। ड्रोन खरीदने का रास्ता आसान हुआ। भारत के लिए इंटिग्रेटेड एयर डिफेंस वीपन सिस्टम को मंजूरी दी। सितंबर 2019 में हूस्टन में हाउडी मोदी हुआ। फरवरी 2020 में अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप।