पटना। राजनीति भी क्या रंग दिखाती है। चार माह पहले चाचा-भतीजा एक साथ लोजपा में थे। फिर सियासी उठापटक के बाद चार सांसदों को साथ लेकर पशुपति कुमार पारस भतीजे चिराग पासवान को दरकिनार कर अलग हो गए। उन्हें राजग का साथ मिला और नेताओं का स्नेह भी। इसका राजनीतिक लाभ भी मिला। लोकसभा में पार्टी संसदीय दल के नेता से लेकर मंत्री पद तक उन्हें हासिल हुआ। और, नुकसान में रहे चिराग। उनके खाली हाथ में सिर्फ नए नाम के साथ पार्टी और चुनाव चिह्न आया। चिराग के लिए अच्छी बात यह हुई कि पार्टी के साथ उनके पिता रामविलास पासवान का नाम जुड़ा है।
अग्निपरीक्षा से कम नहीं है चिराग के लिए यह चुनाव
पिता का नाम और उनके समर्थकों के बूते बिहार विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव के नतीजे चिराग का कद तय करेंगे क्योंकि उनका हर फैसला उनके कद को मापेगा। उनके राजनीतिक कौशल की थाह का भी अहसास कराएगा। उनके लिए ये उपचुनाव साख का सवाल है। राजग और महागठबंधन के बीच में एकतरफा मोर्चा संभाले चिराग के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। उपचुनाव में चिराग के समर्थक उनके लिए कितना असरदार और दमदार साबित होते हैं, यह भी चुनावी नतीजे से साफ हो जाएगा। जो आने वाले समय में उनके राजनीतिक भविष्य के लिए सबसे अहम साबित होगा। निश्चित तौर पर उपचुनाव के नतीजे उनके राजनीतिक भविष्य और प्रदेश की राजनीति में उनकी हैसियत को भी तय कर देंगे। साथ ही यह भी बता देंगे कि चिराग का एकला चलो का फैसला कितना सटीक और सही है। क्योंकि यही चुनावी दांव उन्होंने बीते विधानसभा चुनाव में आजमाया था, तब उनकी पार्टी सिर्फ एक सीट पर जीती थी।