जो सावन में जाय पक ,वह सांवा कहलाय
- बाबूलाल दाहिया
यह हमारे खेत मे दिख रहा सबसे पहले पक जाने वाला अन्न सांवा है जिसके बारे में कहा गयाहै कि,
सांवा जेठा अन्न कहाए। सब अनाज से आगे आए।।
यानी कि सभी अनाजो का दादा भाई। किन्तु इस साल शुरू में बारिश एवं फिर सूखा होने के कारण पकने में भादो तक पहुच गया।
इसे पहली मानसूनी बारिश के तुरन्त बाद ऊँचे खेतो में एक बार हल्की जुताई कर बीज को खेत मे बिखेर देना चाहिए।
फिर मजाल क्या कि कोई घास दबा ले ? क्यो कि यह घासो के लिए भी महा घास है। उसके बाद दो बार की बारिश ही पकने के लिए पर्याप्त होती है।
कैसे-कैसे अनाज शामिल थे हमारी वर्षा आधारित खेती में ? कि सांवा सब से पहले सावन मास में पक रहा है।
भादो माह में कुटकी ,काकुन, मकाई आ रही है । क्वार माह में जल्दी पकने वाली सिकिया, सरइया ,श्यामजीर, करधना आदि धान तो कार्तिक में करगी ,नेवारी ,सेकुरसार ,झोलार आदि धाने भी।
फिर अगहन में ज्वार ,बाजरा, कोदो आदि जिसे ठंड के मौसम में खाया जाता तो सर्दी जुखाम तक न होती। यह मोटे अनाज ऐसे थे जो बगैर दो गुना सब्जी और दाल के खाये ही नही जा सकते थे ।
इसलिए मनुष्य को इन औषधीय गुण युक्त अनाजो से स्वाभाविक रूप से भरपूर पोषक तत्व मिलते थे।
उधर अकाल दुर्भिक्ष के सच्चे साथी भी । क्यो कि डेढ़ दो सौ ग्राम से अधिक तो कोई इन्हें खा ही नही सकता था ?
किंतु जल्दी हजम न होने की क्षमता के कारण किसान मजदूर की दिनभर काम करने की क्षमता भी कायम रखते।
उधर फागुन उतरते उतरते जवा और चना आ जाता।यानी एक ही किसान के खेत मे 8-9 प्रकार के अनाज उगाये जाते। लगता है यही कारण था कि रक्त चाप, मधुमेह और केंसर जैसी बीमारी का तो उन दिनों गांव के लोग नाम तक नही जानते थे।
क्यो कि किसान पहले वह अनाज बोता था जो उसका खेत माँगता था । और हर किसान के खेत अपनी भू संरचना की आवश्यकता नुसार अलग अलग तरह के अनाज के बीज मांगते थे।
इसलिए उसके भोजन में अपने आप 10-12 अनाजो की बाहुलता सामिल हो जाती थी।
किन्तु अब वह उस अनाज को उगाता है जिसे बाजार माँगता है जिससे अब सब का भोजन 3 अनाजो में ही सिमट कर रह गया है। और वह भी रसायन युक्त अनाज। जिसके खाने से जो बीमारिया बढ़ी है वह तो दिख ही रही है।
क्यो कि यह औषधीय गुणों से भरपूर हमारे मोटे और परम्परागत अनाज अब अतीत की बात हो चले है।