वॉशिंगटन। ऑस्ट्रेलिया के साथ परमाणु पनडुब्बी समझौते पर अमेरिका ने अंतत: अपनी गलती स्वीकार कर ली है। अमेरिका और फ्रांस के बीच जारी राजनयिक संकट के सुधार की उम्मीद भी बन गई है। मामले को लेकर जो बाइडेन ने इमैनुएल मैक्रों से पहली बार बात की है। इस बातचीत में दोनों नेताओं ने ऑस्ट्रेलिया के साथ परमाणु पनडुब्बियों के समझौते को लेकर पैदा हुए तनाव पर बात की है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान बाइडेन ने बातचीत के लिए अमेरिका के गलत कदमों को स्वीकार किया है। फ्रांस, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए परमाणु पनडुब्बियों के सौदे ‘ऑकस’ को लेकर भड़का हुआ है। यही कारण है कि उसने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजनयिकों को भी वापस बुला लिया है। बाइडेन और मैक्रों की बातचीत के बाद अमेरिका और फ्रांस न संयुक्त बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि मैक्रों और बाइडेन इस बात पर सहमत हुए हैं कि फ्रांस और हमारे यूरोपीय भागीदारों के रणनीतिक हित के मामलों पर सहयोगियों के बीच खुले परामर्श से स्थिति को फायदा होगा। यह भी बताया गया है कि राष्ट्रपति बाइडेन ने उस संबंध में अपनी जारी प्रतिबद्धता से अवगत कराया है।
‘ऑकस’ ने फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच 43 अरब डॉलर के समझौते को भी खत्म कर दिया है। इस समझौते के जरिए फ्रांस ऑस्ट्रेलिया को 12 परमाणु शक्ति से संचालित पनडुब्बियों को देने वाला था। 2019 में साइन हुए इस डील को फ्रांस से सदी का समझौता बताकर जश्न मनाया था। वहीं अब फ्रांसीसी विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने इसे पीठ में छुरा घोंपने के जैसा बताया था। दुनिया में कोई भी रक्षा सौदा केवल हथियार की अच्छी क्वालिटी को देखकर नहीं किया जाता है। इसके पीछे भू राजनीतिक स्थिति और कूटनीति का अहम भूमिका भी रहती है। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया को चीन से बढ़ते खतरे को कम करने के लिए हर हाल में अमेरिका की जरूरत है। फ्रांस चाहकर भी प्रशांत महासागर और हिंद महासागर में चीन की आक्रामकता का सामना नहीं कर सकता। इतना ही नहीं, वह ऑस्ट्रेलिया को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतनी मजबूती नहीं प्रदान कर सकता है जितना कि अमेरिका के पास ताकत है। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया ने अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ जाकर इस डील को तोड़ा और अमेरिका के साथ नया समझौता किया है। 
जब वैज्ञानिकों ने परमाणु को विभाजित किया तब उन्हें यह महसूस हुआ कि हम इसका बम बनाने के अलावा भी किसी काम में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका उपयोग बिजली पैदा करने के लिए किया जा सकता था। ये परमाणु रिएक्टर पिछले 70 वर्षों से दुनिया भर के घरों और उद्योगों को बिजली दे रहे हैं। परमाणु पनडुब्बियां भी इसी समान तकनीक से काम करती हैं। प्रत्येक परमाणु पनडुब्बी में एक छोटा न्यूक्लियर रिएक्टर होता है। जिसमें ईंधन के रूप में अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम का उपयोग करते हुए बिजली पैदा की जाती है। इससे पूरी पनडुब्बी को पावर की सप्लाई की जाती है। एक पारंपरिक पनडुब्बी या डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बी बैटरी चार्ज करने के लिए डीजल जनरेटर का उपयोग करती है। इस बैटरी में स्टोर हुई बिजली का का उपयोग मोटर चलाने के लिए किया जाता है। किसी दूसरी बैटरी की तरह इसे रीचार्ज करने के लिए स्नॉर्कलिंग प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पनडुब्बियों को सतह पर आना पड़ता है। कोई भी पनडुब्बी सबसे अधिक खतरे में तब होती है, जब उसे पानी की गहराई से निकलकर सतह पर आना होता है। ऐसे में दुश्मन देश के पनडुब्बी खोजी विमान या युद्धपोत उन्हें आसानी से देख सकते हैं।