भोजपुर विजय पटवा के लिए आसान नहीं- एंटी इनकंबेंसी,भीतर घात,स्थानीय का मुद्दा और पोस्टरवार से हुई छवि धूमिल,विकास से पिछड़े ग्रमीणों का विरोध भी बड़ा कारण।

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 भोजपुर विजय पटवा के लिए आसान नहीं-

एंटीएनकंबेंसी,भीतर घात,स्थानीय का मुद्दा और पोस्टरवार से हुई छवि धूमिल,विकास से पिछड़े ग्रमीणों का विरोध भी बड़ा कारण।

सुरेंद्र पटवा राजकुमार पटेल


भाजपा के सुरेंद्र पटवा समर्थक भले ही लगातार चौथी बार भोजपुर से पटवा को जीताने के सपने पाले बैठे हों। लेकिन इसबार भोजपुर पर पटवा के लिए विजय आसान नहीं होगी। इसका मुख्य कारण क्षेत्र में पटवा के प्रति एंटी इनकंबेंसी की लहर माना जा रहा है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में विकास न होने से नाराजगी व्याप्त है। स्थानीय भाजपाईयों में मंचों पर स्थानीय नेताओं की अवहेलना और वर्चस्व को लेकर अंतरकलह भी दिखाई दे रही है। इतना ही नहीं पटवा को टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं नेताओं से निपटना भी बड़ी चुनौती होगी। लगातार क्षेत्र में अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर रहे नेताओं से उन्हें भीतरी घात का भी डर बना है। पोस्टरवार और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास न होने से किये जा रहे विरोध से छवि धूमिल हुई है। इन सब कारणों के चलते इस बार पटवा के लिए जीत की राह आसान नही होगी।

प्रतिद्वंदी पटेल का क्षेत्र में अच्छा होल्ड-

पटवा का इस बार जिस प्रतिद्वंदी राजकुमार पटेल से मुकाबला होने जा रहा है, वह भी क्षेत्र के कद्दावर नेता माने जाते हैं। माना जा रहा है कि भोजपुर क्षेत्र में भाजपा का नागर, धाकड़,किरार समाज का एकमुश्त परंपरागत वोट माना जाता है,उसमें भी पटेल सेंध लगा सकते हैं। इनके अलावा पटवा को जिस मुस्लिम वर्ग से एक मुस्त वोट मिलते थे।उसमें भी अब कटौती हो सकती है। इस बार इन सभी फैक्टरों के साथ युवा मतदाता बदलाव के पक्ष में दिख रहा है। इन सभी फैक्टरों के चलते पटवा के लगातार चौथी बार जीतकर विधानसभा से पहुंचने की राह आसान नजर नहीं आ रही है।

पार्टी के नेताओं से भितरघात का डर-

पटवा को इस बार अपने ही महत्वाकांक्षी कार्यकर्ताओं से भीतर घाट का सामना करना पड़ सकता है। भले ही शीर्ष नेतृत्व ने स्थानीय नेताओं को मना लिया हो।लेकिन पटवा के लिए इस बार टिकट की दावेदारी कर रहे 6 से अधिक स्थानीय नेताओं से उन्हें भीतरी घात का डर बना रहेगा।

बेटे का फार्म भरवाना बना टीस का कारण-

भोजपुर क्षेत्र में स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा ने अपनी विरासत सुरेंद्र पटवा को सौपीं। इसी राह पर चलते हुए पटवा भी दिखाई दे रहे हैं। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब पटवा ने डमी कैंडिडेट के रूप में किसी भी समर्थके के स्थान पर अपने बेटे का फार्म डलवा ना उचित समझा। इससे कार्यकर्ताओं के दिल में टीस लगी है। जो वोट कटाउ साबित हो सकती है।

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